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अब भारतीय सेना भी बाजरा से बने खाद्य पदार्थों का सेवन किया करेगी

अब भारतीय सेना भी बाजरा से बने खाद्य पदार्थों का सेवन किया करेगी

बाजरा यानी मोटे अनाज में प्रोटीन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में विघमान होते हैं। वहीं, फाइटोकेमिकल्स का यह एक बेहतरीन स्रोत भी होता है। ऐसी स्थिति में इसका सेवन करने से सैनिक स्वस्थ और सेहतमंद होंगे। बतादें कि अब भारतीय सेना ने मोटे अनाज को अपने खानपान की सूची में शम्मिलित कर लिया है। अब से भारतीय सेना के जवान मोटे अनाज का सेवन करेंगे। भारतीय सेना द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित करने के उपरांत अपने भोजन में मोटे अनाज को स्थान देने का निर्णय लिया है। विशेष बात यह है, कि बॉर्डर पर सुरक्षा हेतु कार्यरत जवान भी बाजरे से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन करेंगे। मोटे अनाज का सेवन करने से जवानों को प्रचूर मात्रा में पौष्टिक तत्व मिलेंगे एवं पूर्व के तुलनात्मक उनका स्वास्थ्य आधिक अच्छा रहेगा। खबरों के अनुसार, भारतीय सेना के जवान बाजरे के आटे से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन करेंगे। तकरीबन 50 साल पहले सेना द्वारा मोटे अनाज को बंद कर दिया था। इसके स्थान पर गेहूं के आटे का इस्तेमाल किया जा रहा था। सेना की तरफ से आए एक बयान में बताया गया है, कि फिलहाल सैनिकों के लिए राशन में गेहूं एवं चावल के अतिरिक्त मोटे अनाज का भी इस्तेमाल किया जाएगा। मुख्य बात यह है, कि राशन में समकुल अनाज का 25 फीसद मोटा अनाज ही रहेगा। साथ ही, मोटे अनाज खरीद में रागी, ज्वार और बाजरा को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी।

मोटे अनाज के सेवन से सैनिकों का मनोबल और ताकत बढ़ेगी

केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें अपने अपने स्तर से मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए मिलेट्स कार्यक्रम का आयोजन कर रही हैं। इसके पीछे एक मुख्य वजह यह है, कि आज के दौर में परंपरागत और पौष्टिक आहार बिल्कुल विलुप्त होते जा रहे हैं। इनको खानपान में एक नवीन स्थान देने के लिए कई सारी पहल की जा रही है। भारतीय सेना में भी इसका इस्तेमाल होना शुरू हो गया है। क्योंकि इसके अंदर प्रोटीन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में विघमान होते हैं। साथ ही, फाइटोकेमिकल्स का यह एक उत्तम स्रोत भी होता है। यदि सेना के जवान इससे निर्मित भोजन का सेवन करेंगे तो सैनिक स्वस्थ रहेंगे। भारतीय सेना ने बताया है, कि "मोटे अनाज हमारे देश का पारंपरिक भोजन है। यह हमारे देश के भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल है। ऐसे में इसके सेवन से जवानों के अंदर रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाएगी। इससे जवान बीमार भी कम पड़ेंगे। साथ ही सैनिकों का मनोबल भी बढ़ेगा। बयान में ये भी कहा गया है, कि आने वाले दिनों में मोटा अनाज धीरे- धीरे दैनिक भोजन बन जाएगा।" ये भी पढ़े: किसान मोर्चा की खास तैयारी, म‍िलेट्स या मोटे अनाज को बढ़ावा देने का कदम

मोटे अनाज से निर्मित खाद्य पदार्थों को कैंटीन में भी रखा जाएगा

भारतीय सेना ने जवानों से आग्रह किया है, कि वह घरेलू खाद्यान पदार्थों में भी मोटे अनाज से निर्मित भोजन का इस्तेमाल जरूर करें। इसी कड़ी में सेना की कैंटीनों में मोटा अनाज रखने का आदेश भी दिया गया है। साथ ही, सेना के रसोइयों को भी मोटे अनाज के उपयोग से स्वादिष्ट व्यंजन बनाने हेतु विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जबकि, नॉदर्न बॉडर पर कार्यररत सैनिकों हेतु मोटे अनाज से निर्मित खाद्य पदार्थों एवं स्नैक्स पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। जिसके लिए सीएसडी कैंटीन के जरिये से मोटे अनाज द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थों को प्रस्तुत किया जा रहा है।

मोटे अनाजों के उत्पादन से होगी पानी की बचत

बतादें, कि भारत सरकार के कहने के अनुसार संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है। बतादें कि पीएम मोदी विगत कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि किसानों की आय दोगुनी करेंगे। इसीलिए केंद्र सरकार किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ने ‘श्री अन्न’ नामक एक योजना भी जारी करदी है। सरकार का कहना है, कि मोटे अनाज की खेती के जरिए काफी हद तक पानी की बचत होगी। इसकी वजह मोटे अनाज की खेती में सिंचाई की बहुत कम आवश्यता है। तो वहीं लोगों को पौष्टिक आहार भी खाने के लिए मिल पाएगा।
आर्मी से सेवानिवृत कैप्टन प्रकाश चंद ने बागवानी शुरू कर लाखों की कमाई

आर्मी से सेवानिवृत कैप्टन प्रकाश चंद ने बागवानी शुरू कर लाखों की कमाई

पूर्व कैप्टन प्रकाश चंद ने बताया है, कि गेहूं एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती में कोई खास लाभ नहीं है। ऐसी स्थिति में किसानों को अब बागवानी की तरफ रुख करना चाहिए। क्योंकि बागवानी के अंतर्गत कम लागत में ज्यादा मुनाफा है। दरअसल, हम जिस शख्सियत के संबंध में बात करने जा रहे हैं, उनका नाम प्रकाश चंद है। पूर्व में वह भारतीय सेना में कैप्टन के पद कार्यरत थे। रिटायरमेंट लेने के उपरांत उन्होंने गांव में आकर खेती चालू कर दी। विशेष बात यह है, कि अभी उनकी आयु 70 साल है। वे इस आयु में भी खुद से खेती कर रहे हैं। ऐसे कैप्टन प्रकाश चंद हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जनपद स्थित कैहड़रू गांव के मूल निवासी हैं। वह इस आयु में भी बागवानी कर रहे हैं।

पूर्व कैप्टन प्रकाश चंद ने लगभग 2 लाख रुपये की मौसंबी बेची हैं

उनका 20 कनाल जमीन में मौसंबी का बाग है। इससे उन्हें प्रति वर्ष लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। पूर्व कैप्टन प्रकाश चंद का कहना है, कि उन्होंने गांव आकर बागबानी की शुरुआत की, तो दूसरे वर्ष उन्हें 60 हजार रुपये की आमदनी हुई। वहीं, तीसरे वर्ष में उन्होंने लगभग 2 लाख रुपये का मौसंबी बेचा। हालांकि, इस वर्ष ज्यादा बारिश की वजह से बाग को बेहद नुकसान पहुंचा है। फिर, भी उनका कहना है कि इस बार 4 लाख रुपये का मुनाफा होगा।

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बागवानी से बढ़ी पूर्व कैप्टन प्रकाश चंद की आमदनी

कैप्टन प्रकाश चंद का कहना है, कि वह वर्ष 2019 से बागवानी कर रहे हैं। उन्होंने एचपी शिवा प्रोजेक्ट के अंतर्गत बागवानी चालू की है। एचपी प्रोजेक्ट के अंतर्गत किसानों को बागबानी का प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई जाती है। ऐसी स्थिति में उन्होंने एचपी शिवा प्रोजेक्ट के अंतर्गत बंजर पड़ी 20 कनाल भूमि पर मौसंबी एवं अनार की खेती चालू कर दी। मुख्य बात यह है, कि पूर्व कैप्टन अब अपने मौसंबी तथा अनार के बाग में सब्जी भी उगा रहे हैं। इससे उनकी आमदनी भी काफी बढ़ गई है।